टीकाकरण के मामले में भारत ने ऊंची छलांग लगाई है लेकिन देश में लाखों बच्चे ऐसे हैं जिन्हें एक भी टीका नहीं मिल पाया है। इन्हें ‘जीरो-डोज बच्चे’ कहा जाता है और विशेषज्ञों के अनुसार यही समूह भारत के टीकाकरण मिशन की सबसे बड़ी बाधा है।
यह चिंता एक नए विशेषज्ञ परामर्श दस्तावेज में सामने आई है, जिसे महिला समूहों और आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने तैयार किया है। रिपोर्ट में यह भी कहा है कि जीरो-डोज बच्चों का मुद्दा केवल स्वास्थ्य नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक असमानताओं का भी संकेत है।
रिपोर्ट के अनुसार, टीकाकरण कवरेज वर्षों में बढ़ा है जबकि अभी भी कई ऐसे समुदाय, कॉलोनियां और बस्तियां हैं जहां बच्चों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंच ही नहीं पातीं। शहरी झुग्गियां, प्रवासी परिवार, बेहद गरीब समुदाय, सीमावर्ती इलाके और कठिन भूगोल वाले क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित बताए गए हैं। इन सभी जगहों पर बच्चों का टीकाकरण कई स्तरों पर टूट जाता है। कभी परिवार बार-बार स्थान बदलता है, कभी स्वास्थ्य कर्मी पहुंचना मुश्किल होता है और कई बार माता-पिता को टीकाकरण की जानकारी ही नहीं होती।
डाटा में समानता नहीं, इसलिए असलियत पता चलना मुश्किल
रिपोर्ट में एक और अहम मुद्दा उठाया है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) जैसे सर्वे डाटा और सरकारी प्रशासनिक डाटा में काफी असमानता है। इससे असली स्थिति का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है और टीकाकरण योजनाओं का लक्ष्य तय करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार जब तक यह डाटा अंतर दूर नहीं किया जाएगा, तब तक जीरो-डोज बच्चों को पहचानना और उन तक पहुंचना कठिन बना रहेगा।
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कमजोर आबादी से दूर डिजिटल प्रगति
विशेषज्ञों ने कहा कि भारत ने ई-विन, यू-विन और डिजिटल मॉनिटरिंग जैसे सिस्टम के जरिए टीका आपूर्ति को काफी मजबूत किया है, लेकिन डिजिटल प्रगति का लाभ तभी पूरा मिल पाएगा जब सबसे कमजोर आबादी को प्राथमिकता मिल सके। रिपोर्ट साफ कहती है कि जीरो-डोज को खत्म किए बिना भारत का टीकाकरण मिशन अधूरा रहेगा।
हर बच्चे की डिजिटल मैपिंग जरूरी
विशेषज्ञों का मानना है कि जीरो-डोज बच्चों तक पहुंचने के लिए नए मॉडल अपनाने होंगे जैसे स्कूल आधारित टीकाकरण, कार्यस्थल पर टीकाकरण शिविर, मोबाइल क्लीनिक और डिजिटल ट्रैकिंग प्रणाली। रिपोर्ट में सुझाव दिया कि प्रवासी परिवारों और शहरी झुग्गियों के लिए अलग, लक्षित रणनीति बनाई जाए।
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गर्भवती मिहलाएं भी प्रभावित
विशेषज्ञों ने कहा, जीरो-डोज बच्चों का मामला केवल बच्चों तक सीमित नहीं, बल्कि माताओं और महिलाओं के स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है। जब किसी परिवार में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच नहीं होती तो न सिर्फ बच्चों का टीकाकरण रुकता है, बल्कि गर्भवती महिलाओं की जांच, पोषण और अन्य सुविधाएं भी प्रभावित होती हैं।
