वक्फ संपत्तियों के अनिवार्य पंजीकरण की समयसीमा बढ़ाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने यह याचिका दायर की है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट पीठ ने मामले को बीती 28 अक्तूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था, लेकिन उस वक्त सुनवाई नहीं हो पाई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने फिर से इस मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। ओवैसी की तरफ से वरिष्ठ वकील निजाम पाशा सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए। पाशा ने सीजेआई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ से इस मामले पर तुरतं सुनवाई की अपील की।
केंद्र सरकार ने छह माह का दिया था समय
केंद्र सरकार ने वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन, सशक्तिकरण और विकास के लिए UMEED पोर्टल की शुरुआत की थी, जिस पर देशभर में मौजूद सभी वक्फ संपत्तियों का डिजिटल विवरण दर्ज करने का निर्देश दिया था। यह पोर्टल 6 जून को लॉन्च किया गया था और छह माह के भीतर सभी वक्फ संपत्तियों को इस पर दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। वकील निजाम पाशा ने सुप्रीम कोर्ट से अपील कर वक्फ संपत्ति के पंजीकरण की समयसीमा बढ़ाने की मांग की। पाशा ने कहा कि वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण के लिए छह माह का समय दिया गया था, लेकिन पांच महीने का समय तो सुनवाई के दौरान बीत गया और अब सिर्फ एक माह का समय बचा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर रोक लगाने से कर दिया था इनकार
इससे पहले 15 सितंबर को एक अंतरिम आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कुछ मुख्य प्रावधानों पर रोक लगा दी, जिसमें एक क्लॉज यह भी था कि पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक्फ बना सकता है। हालांकि अदालत ने पूरे वक्फ कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। अदालत ने कानून से वक्फ बाय यूजर का प्रावधान हटाने के केंद्र सरकार के फैसले पर रोक लगाने इनकार कर दिया था।
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कोर्ट ने कहा कि नए संशोधित कानून में ‘यूजर द्वारा वक्फ’ प्रावधान को हटाने का केंद्र सरकार का आदेश पहली नजर में मनमाना नहीं था। ‘यूजर द्वारा वक्फ’ का मतलब एक ऐसी प्रथा से है जहां किसी संपत्ति लंबे समय तक बिना किसी रुकावट के इस्तेमाल के आधार पर धार्मिक या धर्मार्थ बंदोबस्ती (वक्फ) के रूप में मान्यता दी जाती है, भले ही मालिक द्वारा वक्फ की कोई औपचारिक, लिखित घोषणा न की गई हो।
