सरकार 2047 तक विकसित भारत के विकास के अगले चरण को रफ्तार देने के लिए देश में बड़े बैंकों की दिशा में काम तेजी से शुरू कर दिया है। अगले साल से इसका नतीजा दिखने भी लगेगा। छोटों को बड़े बैंकों में मिलाकर वैश्विक स्तर के चार-पांच बैंक बनाए जाने की योजना है। इससे घरेलू बैंकों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी।
पिछले महीने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि भारत को कई बड़े, विश्व स्तरीय बैंकों की जरूरत है। इस दिशा में काम शुरू हो चुका है। सरकार ने रिजर्व बैंक और सरकारी बैंकों के साथ बातचीत शुरू कर दी है। इस समय 12 सरकारी बैंक हैं। देश का सबसे बड़ा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) एकमात्र बैंक है जो परिसंपत्तियों के आधार पर वैश्विक शीर्ष-50 बैंकों में शामिल है। यह 43वें स्थान पर है। निजी क्षेत्र का एचडीएफसी बैंक 73वें स्थान पर है। बड़े बैंकों के निर्माण के उद्देश्य से सरकार ने पहले दो बार विलय प्रक्रिया चलाई थी।
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अगस्त, 2019 में चार बड़े बैंकों के विलय की घोषणा की गई। इससे इनकी कुल संख्या 2017 के 27 से घटकर 12 हो गई। 1 अप्रैल, 2020 से यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स का पंजाब नेशनल बैंक में विलय हो गया। सिंडिकेट बैंक का केनरा बैंक में व इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में विलय हो गया। आंध्र बैंक और कॉरपोरेशन बैंक का यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में विलय हो गया।
दो लाख करोड़ तक हो सकता है फायदा
मौजूदा रुझान को देखते हुए सरकारी बैंकों का शुद्ध लाभ 2025-26 के अंत तक 2 लाख करोड़ रुपये के ऐतिहासिक आंकड़े को पार करने की उम्मीद है। 2024-25 में यह रिकॉर्ड 1.78 लाख करोड़ रुपये था। 2023-24 में 1.41 लाख करोड़ रुपये इन बैंकों ने कमाए थे।
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