Himachal Pradesh
pti-Divyansh Rastogi
Himachal
Pradesh
Natural
Disasters
Report:
हिमाचल
प्रदेश
में
प्राकृतिक
आपदाओं
का
खतरा
लगातार
बढ़
रहा
है।
गुरुवार,
24
जुलाई
को
अधिकारियों
ने
खुलासा
किया
कि
2018
से
अब
तक
राज्य
में
148
बादल
फटने,
294
अचानक
बाढ़
और
5,000
से
ज्यादा
भूस्खलन
की
घटनाएं
हो
चुकी
हैं।
कुल्लू,
लाहौल-स्पीति,
किन्नौर
और
मंडी
जैसे
जिले
इन
आपदाओं
के
लिए
सबसे
ज्यादा
संवेदनशील
हैं।
यह
जानकारी
विशेष
सचिव
(राजस्व-आपदा
प्रबंधन)
डी.सी.
राणा
ने
केंद्रीय
बहु-क्षेत्रीय
दल
(MSCT)
की
बैठक
में
दी।

केंद्रीय
दल
की
बैठक
और
चिंताएं
गृह
मंत्रालय
द्वारा
गठित
MSCT
ने
गुरुवार
को
शिमला
में
अतिरिक्त
मुख्य
सचिव
(राजस्व)
के.के.
पंत
की
अध्यक्षता
में
बैठक
की।
इस
बैठक
में
प्राकृतिक
आपदाओं
की
बढ़ती
घटनाओं
के
कारणों
और
रोकथाम
पर
चर्चा
हुई।
पंत
ने
केंद्रीय
जल
आयोग
(CWC)
और
भारतीय
भूवैज्ञानिक
सर्वेक्षण
(GSI)
से
राज्य
में
गहन
अध्ययन
करने
और
आपदा-प्रवण
क्षेत्रों
का
आकलन
करने
की
मांग
की।
उन्होंने
जोर
देकर
कहा
कि
जान-माल
के
नुकसान
को
कम
करने
के
लिए
आपदा
के
बाद
की
प्रतिक्रिया
से
ज्यादा
पहले
से
योजना
बनाने
की
जरूरत
है।
इसके
लिए
उन्नत
सेंसर
लगाकर
डेटा
संग्रह
को
बेहतर
करने
का
सुझाव
भी
दिया
गया।
मानसून
का
कहर:
सड़कें,
बिजली
और
जलापूर्ति
ठप
20
जून
2025
को
मानसून
की
शुरुआत
के
बाद
से
हिमाचल
में
बारिश
से
जुड़ी
घटनाओं
ने
तबाही
मचाई
है।
राज्य
आपातकालीन
संचालन
केंद्र
(SEOC)
के
अनुसार,
इस
सीजन
में
42
अचानक
बाढ़,
25
बादल
फटने
और
28
भूस्खलन
की
घटनाएं
हुईं,
जिनमें
79
लोगों
की
मौत
हो
चुकी
है
और
34
लोग
लापता
हैं।
इन
आपदाओं
से
₹1,387
करोड़
का
नुकसान
हुआ
है।
गुरुवार
शाम
तक
भारी
बारिश
के
कारण
राज्य
में
275
सड़कें
बंद
हो
गईं,
जिनमें
मंडी
जिले
का
राष्ट्रीय
राजमार्ग-70
(मनाली-कोटाली)
भी
शामिल
है।
मंडी
में
सबसे
ज्यादा
165
सड़कें
प्रभावित
हैं।
इसके
अलावा,
56
बिजली
ट्रांसफार्मर
और
173
जलापूर्ति
योजनाएं
भी
बाधित
हैं।
सबसे
ज्यादा
प्रभावित
जिले
कुल्लू,
लाहौल-स्पीति,
किन्नौर
और
मंडी
में
बादल
फटने
और
भूस्खलन
की
घटनाएं
सबसे
ज्यादा
हुई
हैं।
ये
क्षेत्र
अपनी
भौगोलिक
स्थिति
के
कारण
प्राकृतिक
आपदाओं
के
प्रति
बेहद
संवेदनशील
हैं।
विशेषज्ञों
का
कहना
है
कि
जलवायु
परिवर्तन
और
अनियोजित
निर्माण
ने
इन
आपदाओं
को
और
गंभीर
बना
दिया
है।
सरकार
का
क्या
रुख?
केके
पंत
ने
कहा,
‘हमें
आपदा
प्रबंधन
में
तकनीक
का
ज्यादा
इस्तेमाल
करना
होगा।
सेंसर
और
डेटा
विश्लेषण
से
हम
भविष्य
की
घटनाओं
का
पहले
से
अनुमान
लगा
सकते
हैं।’
उन्होंने
केंद्र
और
राज्य
सरकार
के
सहयोग
से
दीर्घकालिक
समाधान
पर
काम
करने
की
बात
कही।
हिमाचल
प्रदेश
में
प्राकृतिक
आपदाओं
की
बढ़ती
संख्या
चिंताजनक
है।
2018
से
अब
तक
148
बादल
फटने
और
5,000
से
ज्यादा
भूस्खलन
ने
राज्य
की
कमजोर
स्थिति
को
उजागर
किया
है।
मानसून
सीजन
में
हुए
नुकसान
और
सड़कों
के
बंद
होने
से
स्थानीय
लोगों
और
पर्यटकों
को
भारी
परेशानी
हो
रही
है।
सरकार
को
अब
पहले
से
बेहतर
योजना,
उन्नत
तकनीक,
और
सख्त
नीतियों
के
जरिए
इन
आपदाओं
से
निपटने
की
जरूरत
है।
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