भारत की अर्थव्यवस्था ने वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में 8.2 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि दर्ज की है, जो पिछले छह तिमाहियों में सबसे अधिक है। एसबीआई रिसर्च की ताजा इकोरैप रिपोर्ट के अनुसार, यह उछाल मुख्य रूप से विनिर्माण, निर्माण और सर्विस सेक्टर के दम पर आया है।
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वित्त वर्ष 2026 में आर्थिक वृद्धि 7.6 प्रतिशत रहने का अनुमान
रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू मांग और उद्योगों के बेहतर प्रदर्शन के चलते पूरे वित्त वर्ष 2026 में आर्थिक वृद्धि 7.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है। विनिर्माण और सेवाओं में लगातार हो रही सुधार ने जीडीपी को मजबूत आधार दिया है।
एसबीआई रिसर्च के मुताबिक, देश की सकल नाममात्र जीडीपी वित्त वर्ष 2026 के अंत तक लगभग 4.1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की राह पर है। यह भारत की आर्थिक प्रगति में एक और अहम पड़ाव साबित होगा।
पहली छमाही में वास्तवीक जीडीपी 8 प्रतिशथ से बढ़ी
रिपोर्ट में कहा गया है पहली छमाही में वास्तविक जीडीपी 8.0 प्रतिशत बढ़ी है। अगर तीसरी तिमाही में 7.5-7.7% और चौथी तिमाही में लगभग 7% की वृद्धि होती है, तो पूरे वित्त वर्ष की वृद्धि लगभग 7.6% रहने की संभावना है। दूसरी तिमाही में नाममात्र जीडीपी में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह एक वर्ष पहले दर्ज की गई 8.3 प्रतिशत की वृद्धि से अधिक है।
वास्तविक जीडीपी और नाममात्र जीडीपी का अंतर घटकर सिर्फ 0.5% रह गया
खास बात यह है कि वास्तविक और नाममात्र GDP के बीच का अंतर, जो वित्त वर्ष 23 की पहली तिमाही में 12 प्रतिशत अंक था, घटकर अब सिर्फ 0.5 प्रतिशत अंक रह गया है। यह कम मुद्रास्फीति और मजबूत घरेलू मांग का संकेत देता है।
कोर सकल मूल्य वर्धन (कृषि और सार्वजनिक वित्त को छोड़कर) 8.5% बढ़ा, जबकि पिछले साल यह वृद्धि केवल 5.6% थी। रिपोर्ट कहती है कि विकास मुख्य रूप से घरेलू मांग आधारित है, जिसे सेवाओं के निर्यात और कम महंगाई ने और मजबूती दी है।
सेक्टरवार प्रदर्शन कैसा रहा?
- कृषि क्षेत्र: 3.5% वृद्धि
- उद्योग: 7.7% वृद्धि (पिछले वर्ष 3.8%)
- विनिर्माण: 9.1% की तेज छलांग
- सेवाएं क्षेत्र: 9.2% वृद्धि
- रिपोर्ट के अनुसार श्रम-प्रधान क्षेत्रों, कृषि, निर्माण, मैन्युफैक्चरिंग और व्यक्तिगत व वित्तीय सेवाओं ने स्थिर गति बनाए रखी है।
खपत आधारित आंकड़ों में भी मजबूत गतिविधि दिखी
- निजी खपत: 7.9% वृद्धि
- कैपिटल फॉर्मेशन: 7.3% वृद्धि
खर्च धीरे-धीरे उत्पादक उपयोग की ओर शिफ्ट हुआ
कैपिटल गुड्स, कैमिकल्स और रेयर अर्थ के आयात में बढ़ोतरी ने निवेश गतिविधियों को बढ़ावा दिया। वहीं सोना जैसी मूल्यवान वस्तुओं की मांग में गिरावट से संकेत मिलता है कि खर्च धीरे-धीरे उत्पादक उपयोग की ओर शिफ्ट हो रहा है।
एमएसएमई ऋण में ऐतिहासिक बढ़त
रिपोर्ट की सबसे उल्लेखनीय खोज एमएसएमई क्षेत्र में रिकॉर्ड ऋण वृद्धि है। वित्त वर्ष 2009 और वित्त वर्ष 2025 के बीच, एमएसएमई ऋण में वृद्धि 19.87 लाख करोड़ रुपये रही, जो वार्षिक औसत 1.17 लाख करोड़ रुपये है। वित्त वर्ष 26 के पहले सात महीनों में ही यह आंकड़ा 3.74 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। मौजूदा रुझानों को देखते हुए, वित्त वर्ष 26 में एमएसएमई ऋण में 6.4 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि देखी जा सकती है, जो 16 साल के औसत से लगभग 5.5 गुना ज्यादा है।
रिपोर्ट के अनुसार यह उछाल दर्शाता है कि भारत की वृद्धि उसके आर्थिक आधार में गहराई तक पहुंच रही है। इसमें लघु और मध्यम उद्यम केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं। इसमें कहा गया है कि कम महंगाई और तेज क्रेडिट ग्रोथ के बीच आरबीआई आगामी नीति बैठक में तटस्त रुख बनाए रखते हुए दरों के भविष्य को लेकर मार्गदर्शन तय करने पर ध्यान दे सकता है।
